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कविता

सत्यवादी

मुंशी रहमान खान


तन मन बदलै जीव का बदलै सम्‍वत वार।
बदलै नृप कानून जग बदलै सागर धार।।
बदलै सागर धार बदल जाय मानुष कहिकर।
बदलै जाय संसार बदल जाय सरिता बहिकर।।
कहैं रहमान रेख नहिं बदलै प्रकृति न बदलै सज्‍जन।
सत्वादी बदलैं नहीं अर्पण कर दें धन तन।।

 


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